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सोमवार, 20 जुलाई 2009

बच के रहना रे बाबा... जाने कौन कैसा मिल जाय !?!

 

मुझे तो अपने ही ऊपर तरस आ रही थी। कैसे यह सब सुनकर भी मैं उसके लिए कुछ खास नहीं कर पाया था। बेचारी कितनी हिम्मत करके आयी होगी अपना दुखड़ा सुनाने...।

मैं अपने बॉस के पास उनके चैम्बर में बैठा कुछ सरकारी कामकाज पर विचार-विमर्श में तल्लीन था। मई का महीना... बाहर सूर्यदेवता आग उगल रहे थे। कमरे के भीतर आती-जाती बिजली की आँख-मिचौनी के बीच ए.सी. की अधकचरी सेवा मन को उद्विग्न कर रही थी। गर्मी के कारण दफ़्तर में प्रायः सन्नाटा ही था। इसी बीच उसने अपने पिता के साथ कमरे में प्रवेश किया था।

साफ-सुथरे परिधान में पूरा शरीर ढँका हुआ था। पूरी बाँह ढँकने वाला कुर्ता, एड़ियों के नीचे तक पहुँचने वाली सलवार, और गले में लिपटा व सिर को ऊपर तक ढँकने वाला सूती दुपट्टा कान के पीछे करीने से दबाया गया था। कट-शू में पूरी तरह छिपे हुए पाँव उसके नख-शिख आवृत्त होने के सायास उपक्रम की कहानी कह रहे थे। दुग्ध धवल चेहरे पर प्रायः कोई मेक-अप नहीं था। जैसे सोकर उठने के बाद किसी अच्छे फेसवाश से चेहरा धुलकर साफ़ तौलिए से पोंछ लिया गया हो... बस। चेहरे पर असीम गाम्भीर्य और स्थिरता का भाव चस्पा था। निगाहें जमीन की ओर अपलक ताकती हुईं। करीब दो घण्टे की बात-चीत में कुछ सेकेण्ड्‌स के लिए ही नज़र ऊपर उठी होगी।

साथ में जो सज्जन आए थे वे काफी थके-हारे और दुखी दिख रहे थे। चेहरे पर उभरता पसीना जो रुमाल से बार-बार पोंछने के बाद भी छिटक आता। उम्र साठ के पार रही होगी। हमने सोचा शायद पेंशन के फरियादी होंगे जो अपनी बेटी के साथ आए हैं। बिना कुछ बोले कुर्सी पर आराम से बैठ गये। अपने थैले से कुछ कागज निकालने और रखने लगे। जैसे कोई खास कागज दिखाने के लिए ढूँढ रहे हों...।

बॉस ने हमारी बात-चीत बीच में रोककर उनसे आने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने इशारे से कहा कि आपलोग अपनी बात पूरी कर लें और ध्यान से सुनने को तैयार हों तभी वे अपनी बात कहेंगे। हम फौरन उनकी बात सुनने को तैयार हो लिए।

“हमें अमुक विभाग के एक अधिकारी की पे-स्लिप चाहिए...”

“कौन सा अधिकारी? कहाँ काम करता है?”

“आज-कल लखनऊ में ट्रेनिंग ले रहा है...”

“तो पे-स्लिप तो वहीं से मिलेगी, यहाँ से उसकी कोई सूचना कैसे मिल सकती है?”

“वहाँ से नहीं मिल पा रही है, तभी तो ट्रेजरी में आपकी मदद के लिए आए हैं...” पिता का स्वर लाचार सा था।

“किसी भी ट्रेजरी से प्रदेश के सभी अफसरों की पे-स्लिप नहीं मिलती...। ऐसी क्या जरूरत पड़ गयी आपको पे-स्लिप की..? और मिलने में क्या समस्या आ रही है?” बॉस के प्रश्न में हैरानी थी।

इसके बाद उन्होंने जो कहानी सुनायी वह सिर पीट लेने लायक थी।

“हमने इस लड़की की शादी उस अफसर लड़के से की थी। दहेज में काफी रकम खर्च किया था मैने। गाड़ी और जेवर अलग से...। ...लेकिन हमें धोखा हो गया है। ...अब नौबत तलाक की आ गयी है। ...कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। उसी सिलसिले में हमें उसकी नौकरी से सम्बन्धित कागजात की जरूरत है” बगल में शान्त बैठी बेटी के बाप की आवाज रुक-रुककर निकल रही थी।

सहसा लड़की ने भी बोलना शुरू कर दिया, “वह झूठ पर झूठ बोल रहा है। हम उसकी असलियत साबित करना चाह रहे हैं लेकिन सरकारी विभाग हमारी मदद नहीं कर रहे हैं।”

हमने पूछा, “आखिर गड़बड़ी क्या हो गयी जो बात तलाक तक पहुँच गयी? ”

इसपर बाप-बेटी दोनो एक दूसरे का मुँह देखने लगे। जैसे यह तय कर रहे हों कि बात खोली जाय कि नहीं...। फिर दोनो ने इशारे से एक-दूसरे को सहमति दी।

imageलड़की ने बड़े इत्मीनान से बताया, “इन-फैक्ट... वो इम्पोटेन्ट है”

यह सुनकर हम सन्न रह गये, “ओफ़्फ़ो... आपलोगों को बड़ा धोखा हुआ!”

“...अगर ऐसा था तो उसे क्या पड़ी थी शादी करने की”, मैने हैरत से कहा और मन में उभर आये अजीब  से भाव को संयत करने के लिए कुर्सी की पीठ पर टेक लेकर छत की ओर निहारने लगा।

...ईश्वर ने इस लड़की को इतना सुन्दर व्यक्तित्व दिया, एक सक्षम पिता के घर जन्म लेकर सुख सुविधाओं में पली बढ़ी, घर वालों ने अच्छे दान-दहेज के साथ एक राजपत्रित अधिकारी के साथ इसका विवाह कर दिया; ...फिर भी बेचारी आज भरी दुपहरी में कोर्ट  कचहरी और सरकारी दफ़्तरों के चक्कर काट रही है। निश्चित्‌ रूप से बुरे ग्रहों का प्रभाव झेल रही है यह...। ...ऐसा दुर्भाग्य जिसकी कल्पना भी न की जा सके!

इस बीच बॉस ने फोन मिलाकर उस ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट के अधिकारियों से बात करनी शुरू कर दी थी। स्वार्थ में अन्धे युवक द्वारा अपनी कमजोरी छिपाकर एक मालदार बाप से दहेज ऐंठने के लालच में एक सुन्दर सुशील कन्या का जीवन नर्क बना देने वाले का परोक्ष रूप से सहयोग करने वालों को भी लानत भेंजी जाने लगी।

मैने भी ‘सूचना का अधिकार कानून (RTI Act)’ के अन्तर्गत पे-स्लिप की सूचना मांगने की सलाह दे दी। इसपर उन्होंने बताया कि वे इसप्रकार के सारे उपाय आजमा चुके हैं। कोई परिणाम नहीं निकला। मैने प्रदेश के ‘सूचना आयुक्त’ से अपील करने को कहा। वहाँ कार्यरत अपने एक मित्र से मदद के लिए फौरन मोबाइल पर बात कर लिया और इन लोगों से परिचय भी करा दिया।

इस काम से मेरे मन को थोड़ी तसल्ली मिली...।

हमने उन दोनो के मुँह से ही शादी तय होने, बारात का भव्य स्वागत सत्कार किए जाने और मोटी दहेज देने के साथ ही साथ लड़की के ससुराल जाने के बाद एक-दो दिन के भीतर उसे अपने दुर्भाग्य की जानकारी होने, संकोच में बात छिपाकर रखने, उस लड़के द्वारा ‘फर्जी नाम से पर्चा बनवाकर’ अनेक डाक्टरों से परामर्श लेने तथा अपनी अक्षमता को छिपाने के प्रयासों का विस्तृत वर्णन सुना। पूरी दास्तान बताने में लड़की ज्यादा मुखर हो उठी थी। उसने कहा कि मैने कोर्ट से इसका मेडिकल टेस्ट कराने की प्रार्थना की है लेकिन वह इससे भग रहा है।

हमने यथासामर्थ्य मदद का आश्वासन देकर उन्हें सहानुभूति पूर्वक विदा किया। उन्होंने भी अपने ठगे जाने की कहानी विस्तार से बताने के बाद हमसे सधन्यवाद विदा लिया।

भाग-दो 

जुलाई की ऊमस भरी गर्मी...। मैं अपने ऑफिस में बैठा कूलर की घर्र-घर्र के बीच चिपचिपे पसीने पर कुढ़ता हुआ सरकारी फाइलों और देयकों (bills) आदि का काम निपटा रहा था। बाहर का मौसम तेज धूप और रुक-रुक कर पड़ते बारिश के छींटो से ऐसा खराब बन गया था कि बहुत मजबूरी में ही बाहर निकला जा सकता था। मेरे कमरे में कोई दूसरा न था।

तभी एक स्मार्ट सा युवक अन्दर आया और मेरी अनुमति लेकर कुर्सी पर बैठ गया। उसका चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा...।

(कहानी थोड़ी लम्बी खिंचने वाली है, इसलिए अभी यहीं बन्द करता हूँ। शेष अगली पोस्ट में बहुत शीघ्र...)

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

15 टिप्‍पणियां:

  1. मोबाइल से जोड़ टिप्पणी दे रहा हूँ- इस खतरे के बाद भी कि बाकी प्रिय ब्लॉगर नाराज हो जाएँगे, आज कल कुछ पढ़ नहीं पाता हूँ और टिप्पणी तो बहुत ही कम कर पाता हूँ।

    ऐसा है अपने इलाके के एक ही 'कथ्थक' को ब्लॉग पर जमे रहने दो। आधुनिक काल की कथा माला ले हमारे हाथ पर क्यों लात मार रहे हो? माना कि इस कथा से बहुत ही समकालीन विषयों पर बहस होगी लेकिन फॉर्मेट कथा जैसा क्यों रखा?। सीधे वर्णना शैली अपना सकते थे।
    ये ठीक नहीं है। हम रिसिया गए हैं - हाँ।

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  2. इस नौजवान को भी देख लिया जाये!

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  3. ब्लागवाणी में ,मतलब आभासी दुनिया में भी आज गिरिजेश और सिद्धार्थ ऊपर नीचे साथ साथ हैं और यह घातक संयोग है और दोनों ही कथा वाचन में लगे हैं -कुछ अनहोनी होने की आशंका से मन बार बार उब चुभ हो रहा है -ॐ शान्ति... शान्ति !

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  4. अभी कहानी खत्म होती नजर आ रही थी कि आपने नव युवक की इन्ट्री करा दी....और फ़िर ब्रेक ऐसे समय पर लिये हैं कि अगली पोस्ट के लिये उत्सुकता कुछ ज्यदा ही बढ गयी है. अब जल्द से जल्द उनकी भी कह सुनाइये. अगली पोस्ट के आने तक ,,,..?????...

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  5. याद आ गया बचपन की इन्द्रजाल कामिक्स का " गतान्क से आगे" के इन्तजार के दिन.

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  6. मैं जानता हूँ कि मैं क्या कहा रहा हूँ..और हो सकता है कुछ लोग मुझसे सहमत भी नहीं होंगे.. पर विवाह से पहले ही इस तरह टेस्ट हो जाना चाहिए लड़के और लड़की दोनों का.. इस विषय पर एक ब्लोगर मित्र से मेरी बात भी हुई है.. जहाँ मैंने कहा था.. मैं इस तरह के किसी भी टेस्ट के लिए तैयार हूँ..

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  7. कुश से सहमत। कुंडली मिलाने की बजाय ब्लड ग्रुप, एड्स, नपुंसकता, बीपी और हार्ट की जाँच होनी चाहिये… विवाह से पहले (दोनों की)

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  8. ऐसी अपंगता को शादी के पहले जाहिर कर दो दो परिवार बचाये जा सकते थे..अफसोसजनक वाकया रहा. अगले एपिसोड का इन्तजार..जाने ये नौजवान क्या कथा लेकर आया है.

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  9. ऐसी अपंगता को शादी के पहले जाहिर कर दो दो परिवार बचाये जा सकते थे..अफसोसजनक वाकया रहा. अगले एपिसोड का इन्तजार..जाने ये नौजवान क्या कथा लेकर आया है.

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  10. बढ़िया पोस्ट.
    उत्सुकता है इस नौजवान के बारे में जानने की.

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  11. अच्छा सुरुआत, अंत का संसय देखते हैं क्या क्या टर्न लेता हैं?. लेखनी ने बांध कर रखा है.

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  12. असली कहानी लगता है अब आने वाली है.

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  13. Suresh G Aur Sameer G dono se sahmat hoon. Aage ki kahani ka intezar hai.

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  14. vaise mujhe intajar ki aadat nahi hai,isi vajah se mai koi TV dharavahik bhi nahi dekhta parantu mujhe is kahani ke agale bhag ka intajar hai.achhi prastuti hai.

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